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ब्रह्मचारी नारद की साठ पत्नियां थीं! जानिए भोग-विलास में लिप्त नारद से क्यों हुए थे ब्रह्मा जी नाराज |
नारायण-नारायण, हाथ में वीणा, गले में कंठी माला और जुबान पर नारायण का नाम जपते हुए भक्त नारायण को हम ऐसे ऋषि के रूप में देखते आए हैं जिनके मुंह पर हमेशा नारायण का नाम रहता है लेकिन फिर भी इधर-उधर की चुगली करने से बाज नहीं आते. हिन्दू धर्म के पौराणिक इतिहास में देवर्षि नारद की भूमिका बहुत ही खास रही है क्योंकि उनकी इन्हीं चुगलियों के पीछे ही छिपा था सृष्टि का रहस्य, सृष्टि के संचालन का राज. रामायण में आपने देवर्षि नारद को इधर की बातें उधर करते, दो लोगों के बीच कलह का कारण बनते देखा होगा लेकिन आज हम आपको बताएंगे नारद हर युग में मौजूद थे, बस उनके किरदार अलग-अलग थे:
भोग विलास में लिप्त गंधर्व नारद से ब्रह्मा हुए रुष्ट
नारद जी पूर्व कल्प में उपबर्हण नामक गंधर्व थे जिन्हें अपने रूप पर बेहद घमंड हो गया था. गंधर्व रूपी नारद की बहुत सारी पत्नियां थीं. एक बार ब्रह्मा जी ने सभा आयोजित की जिसमें नारद जी अपनी सभी पत्नियों सहित उपस्थित थे किंतु वहां वह भगवत् भक्ति की बजाय हास-परिहास में लिप्त हो गए. इसे देख ब्रह्मा जी कुपित हुए और उन्हें शूद्र योनि में जन्म लेने का श्राप दे दिया. उसी श्राप के असर से नारद जी ने शूद्रा दासी के यहां जन्म लिया तथा संतों की निष्ठापूर्ण सेवा की जिससे उनके पाप धुल गए. उनकी साधना से प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी ने उन्हें आशीर्वाद दिया तथा मृत्यु पश्चात वे ब्रह्मा जी के मानस पुत्र के रूप में अवतरित हुए.
छांदोग्य उपनिषद
नारद के होने का सबसे पहला उल्लेख छांदोग्य उपनिषद में मिलता है, जहां वह सनतकुमार नामक संत के भीतर पनप रही उदासी और अवसाद को दूर करने के लिए शिक्षा ग्रहण करने जाते हैं. ऋषि सनतकुमार, नारद के ज्ञान की परीक्षा लेते हैं और पाते हैं कि नारद बहुत ज्यादा बुद्धिमान हैं लेकिन अपने भीतर छिपे असंतोष से मुक्ति नहीं पा पा रहे हैं. यहां नारद कोई देवर्षि नहीं बल्कि एक भटके हुए इंसान के रूप में दिखते हैं जो ज्ञान प्राप्त करने के लिए महर्षि सनतकुमार की शरण में जाते हैं.
रामायण
रामायण में भी नारायण बहुत महत्वपूर्ण किरदार में नजर आते हैं. नारद ने तीनों लोकों का भ्रमण किया हुआ था इसलिए महर्षि वाल्मीकि ने उनसे एक सवाल पूछा. वाल्मिकी ने उनसे कहा ‘हे नारद, तुम तीन लोकों का भ्रमण कर चुके हो, चारों वेद पढ़ चुके हो, इसलिए क्या तुम जानते हों इस धरती का सबसे पवित्र, धार्मिक, प्रतापी, सत्य की राह पर चलने वाला और किसी भी तरह की ईर्ष्या की भावना से मुक्त प्राणी कौन है? वाल्मीकि के इस उत्तर का जवाब नारद ने अयोध्या के राजा राम के रूप में दिया. नारद ने महर्षि वाल्मीकि को राम की पूरी कहानी सुनाई और फिर वहां से अंतर्ध्यान हो गए.
महाभारत
महाभारत में जिस नारद को हम देखते हैं वो राजनीति और आचार-संहिता के स्वामी हैं. वह इंद्रप्रस्थ आकर युद्धिष्ठिर को राजनीति का पाठ पढ़ाते हैं. नारद ने ही उन्हें समझाया था कि धर्म को सिर्फ धर्म की राह पर चलकर ही बचाया जा सकता है
अन्य ग्रंथ
भगवत् पुराण में नारद को देवताओं के बीच सूचना प्रसारित करने के माध्यम के तौर पर दर्शाया गया है. नारद ने कभी शादी तो नहीं की थी लेकिन कहा जाता है उनकी 60 पत्नियां हैं. इतना ही नहीं उन्हें पृथ्वी के पहले पत्रकार के तौर पर भी जाना जाता है.
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